
तरंग और कण (Wave & Particle) दो परस्परविरोधी वस्तुएं हैं। कण पदार्थ के सूक्ष्म रूप को कहते हैं जिसमें द्रव्यमान होंता है। इसे छूकर महसूस किया जा सकता है। जबकि तरंग ऊर्जा का रूप होती है। ऊर्जा का एक जगह से दूसरी जगह ट्रांस्फर होना तरंग गति के फलस्वरूप होता है। तरंग में कोई द्रव्यमान नहीं होता। इसे छूकर महसूस नहीं किया जा सकता। इस तरह किसी कण के तरंग होने का कोई सवाल नहीं उठता और न कोई तरंग कण की तरह व्यवहार कर सकती है।
लेकिन बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में डी0 ब्राग्ली और मैक्स प्लांक जैसे वैज्ञानिकों ने साइंस की नयी ब्रांच ‘क्वांटम मैकेनिक्स’ की खोज करके विज्ञान जगत में हलचल मचा दी। इस ब्रांच में उन्होंने तरंग और कण सम्बन्धी नये नियमों का सृजन किया। इन नियमों के अनुसार कोई पदार्थ तरंग की तरह भी व्यवहार करता है। इस पदार्थ का द्रव्यमान जितना कम होता है उतना ही ज्यादा वह तरंग की तरह व्यवहार करता है। इस प्रकार तरंग गति उन पदार्थों में भी होने लगी जिनमें द्रव्यमान होता है।
प्रकाश और दूसरी विद्युत चुम्बकीय तरंगें ऊर्जा के छोटे पैकेटों के रूप में चलती हैं जिन्हें क्वांटा कहा जाता है। प्रत्येक क्वांटा का एक संवेग (Momentum) होता है और साथ ही साथ इसका एक गतिज द्रव्यमान (Kinetic Mass) होता है जो संवेग और वेग का अनुपात होता है। इस तरह तरंग भी कण की तरह व्यवहार करने लगी। यानि एक कण्टराडिक्शन।
अब बात करते हैं मैथेमैटिक्स की, जिसे विज्ञान की रानी कहा जाता है। एक छोटा सा वृत्त खींचकर उसके अंदर उपस्थित बिन्दुओं को गिना जाये तो वे अनन्त होंगे। क्योंकि बिन्दु की कोई लम्बाई चौड़ाई या ऊंचाई नहीं होती। अब इस वृत्त को दूना कर दिया जाये, चार गुना कर दिया जाये या पृथ्वी की परिधि के बराबर कर दिया जाये, बिन्दु उतने ही रहेंगे उसके अन्दर। यानि अनन्त। मतलब ये हुआ कि जितने बिन्दु एक छोटे से वृत्त में थे उतने ही पृथ्वी की परिधि के बराबर वृत्त में आ गये। इस प्रकार दो असमान साइज के वृत्त अपने अन्दर बिन्दुओं को रखने की समान धारिता रखते हैं। एक और कण्टराडिक्शन।
इसी तरह कण्टराडिक्शन पर आधारित जेनो की कुछ पहेलियां मशहूर हैं। जिनमें से एक कछुआ और खरगोश पहेली के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अनुसार कछुए और खरगोश के बीच दौड़ में अगर कछुए को थोड़ा पहले चला दिया जाये तो खरगोश उसे कभी पार नहीं कर पायेगा। क्योंकि जितनी देर में वह कछुए के स्थान पर पहुंचेगा उतनी देर में कछुआ थोड़ा आगे बढ़ चुका होगा। खरगोश जब तक नये स्थान पर पहुंचेगा कछुआ और आगे बढ़ चुका होगा। और इस तरह खरगोश हमेशा कछुए के पीछे रहेगा।
हाईजेन्बर्ग के अनिश्चितता के सिद्धान्त के अनुसार एटम में चक्कर लगाते इलेक्ट्रान की सही पोजीशन और वेग का किसी निश्चित समय पर निर्धारण असंभव है। क्योंकि जितनी देर में हम किसी पोजीशन पर वेग को मापेंगे, उतनी देर में इलेक्ट्रान की पोजीशन बदल चुकी होगी।
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अच्छा लेख ।
ReplyDeleteज़ीशान भाई , आप के इल्म का तो मैं मुरीद हो गया. माशाल्लाह
ReplyDeleteIt's realy a very informative article.
ReplyDeleteबहुत ज़बरदस्त लेख जीशान भाई... बेहतरीन जानकारियाँ!
ReplyDeletemasha Allah mai sare parts ko apne time time aur group me share krta rhta hu, taki log iska istefada usthaye..................Allah apko majid ilm se nawaje
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